काली मिट्टियाँ (Black Soils)
काली मिट्टियों को स्थानीय रूप से 'रेगुर व उत्तर प्रदेश में करेल काली कपास की मिट्टी' तथा अंतर्राष्ट्रीय रूप से 'उष्ण कटिबन्धीय चरनोजम' कहा जाता है .
काली मिट्टी का विस्तार
काली मिट्टी का विस्तार लगभग 5.46 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर है, जो देश के 16.6% भू-क्षेत्र पर है . यह भारतीय मृदा का तृतीय विशालतम वर्ग है . इस मिट्टी का विकास सर्वाधिक मात्रा में महाराष्ट्र में हुआ है . इसके आलावा यह मिट्टी पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश पर दक्कन लावा (बेसाल्ट) के अपक्षय से हुआ है .
काली मिट्टी की विशेषता -
इसकी संरचना सामान्यत: चीका मय (Clay) डली युक्त (Cloddy) तथा कभी-कभी भंगुर होती है . ये मिट्टी सामान्यत: लोहे, चूने, कैल्शियम, पोटाश, अल्यूमिनियम, तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट से समृद्ध होती है . इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा जैविक पदार्थो की कमी होती है .
इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता सर्वाधिक होती है . अत: ये जल से संतृप्त होने पर मृद तथा चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इनमे गहरी दरारें उत्पन्न हो जाती है . कारणस्वरूप इस मृदा को 'स्वत: जुताई वाली मृदा' की उपमा प्रदान की जाती है .
इस मिट्टी में उर्वरता अधिक होती है, अतएव ये जड़दार फसलो जैसे- कपास, तूर, खट्टे फलों तथा चना, सोयाबीन, तिलहन, मोटे अनाजों, सफोला आदि की खेती के लिये उपयुक्त रहती है .